- पुष्परंजन
देखते-देखते धर्म संसद के मायने बदल दिये गये। अशोक सिंघल के रहते जितने धर्म संसद आहूत किये गये, प्रस्ताव पढ़ लीजिए, कभी गांधी पर हमला नहीं हुआ। राष्ट्रपिता को छोड़िये, पीवी नरसिम्हा राव द्वारा एक करोड़ कथित घूस लिये जाने का मुद्दा किसी ने धर्म संसद में उठाना चाहा था, उसे भी अशोक सिंघल ने सख्ती से रोक दिया था।
डॉ.कर्ण सिंह नब्बे वर्ष के हो चुके हैं। सेक्युलर कांग्रेस, और उसी प्लेटफार्म पर हिंदू धर्म के चोबदार डॉ.कर्ण सिंह। 'मुग्घम बात पहेली जैसी, बस वहीं बूझे, जिसको बुझाये।' कश्मीर में इन्हें सदरे रियासत बनाने, और निर्वाचित सरकार के नेता शेख अब्दुल्ला को 11 साल जेल में डाले जाने की कलि कथा पर नहीं आएंगे। वैसी कथा, जिसमें राजनीतिक नैतिकता का निर्माण नहीं, ध्वंस होता हो। 'सेक्युलर कांग्रेस' के प्रमुख नेता डॉ. कर्ण सिंह को विश्व हिंदू परिषद से बगलग़ीर होने की छूट किसने, और क्यों दी थी? यह प्रश्न आज इसलिए कि तब इंदिरा गांधी की मज़ीर् के बग़ैर पार्टी में पत्ता नहीं हिलता था।
19 फरवरी 1981 को तमिलनाडु के मीनाक्षीपुरम में पलार समाज के 180 परिवारजन, जो अनुसूचित जाति की श्रेणी में आते थे, ने अचानक इस्लाम स्वीकार कर लिया था। जिसने ख़बर सुनी, हैरान हुआ। इस घटना से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांघी सबसे अधिक नाखुश थीं। गृह मंत्री जैल सिंह ने जांच का आदेश दिया। अखबारबाज़ी इतनी हुई कि अटल बिहारी वाजपेयी तक को मीनाक्षीपुरम जाना पड़ा। मीनाक्षीपुरम में इसके प्रयास तेज़ हो गये कि उन्हें वापिस हिंदू बनाया जाए। इस मुहिम की कमान कर्ण सिंह को दी गई थी। तब हुआ ये कि डॉ. कर्ण सिंह विश्व हिंदू परिषद के नेताओं से बगल$गीर होने लगे।
आग मीनाक्षीपुरम में लगी थी, मगर रोटी सेंकने का उपक्रम केरल के कोचिन से आरंभ हुआ। डॉ. कर्ण सिंह ने कोचिन में 30 अप्रैल 1982 को 'विशाल हिंदू सम्मेलन' आहूत किया, जिसमें पांच लाख लोग आये थे। इस सम्मेलन को कवर करने वाले पत्रकार श्रीधर पिल्लई लिखते हैं,' कोचिन की दीवारें ग्रैफ्टिी से रंग दी गई थीं। जिधर देखो, ओम के निशान और भगवा झंडे। इसमें विहिप और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोग भी मदद दे रहे थे। कोचिन के त्रिवेणी संगम पर जुटे भक्तों को 'विराट हिंदू समाज' के अध्यक्ष डॉ. कर्ण सिंह और संघ परिवार के प्रमुख सदस्य स्वामी चिन्मयानंद संबोधित कर रहे थे। चिन्मयानंद विहिप के संस्थापकों में से भी थे।
कोचिन में 'विशाल हिंदू सम्मेलन' के हवाले से कांग्रेस कैसे कह सकती है कि वह सेक्युलर विचारधारा वाली पार्टी है? यह संघ और विहिप की पहली प्रयोगशाला थी, जिसमें केवल दिखाने के वास्ते डॉ. कर्ण सिंह का इस्तेमाल किया गया था। इसके प्रकारांतर 12-13 मार्च 1983 को अमृतसर में विश्व हिंदू परिषद ने 'विशाल हिंदू धर्म सम्मेलन' कराया, जिसमें भाषण देते हुए डॉ. कर्ण सिंह ने सरकार को चेताया कि पंजाब में अतिवाद के शिकार हिंदू हो रहे हैं, जिसके परिणाम भयावह हो सकते हैं। उसके अगले साल 7 जुलाई 1984 को न्यूयार्क में दसवां विश्व हिंदू सम्मेलन विहिप ने आयोजित किया था, उस मंच पर भी डॉ. कर्ण सिंह ने बीज वक्तव्य दिया। डॉ. कर्ण सिंह का विहिप के मंच पर जाना क्या इंदिरा गांधी की सहमति से हो रहा था? इसके साढ़े तीन माह बाद ही 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या हो गई थी।
कांग्रेस कन्फ्यूज़्ड थी कि यदि हिंदू एजेंडे को आगे बढ़ाते हैं, तो मुस्लिम जनाधार खिसकता है। 21 जून 1991 से 16 मई 1996 के कालखंड को ध्यान से देखिये तो पीवी नरसिम्हा राव ने कांग्रेस को वहां पहुंचाने की चेष्टा की थी, जहां से एक विराट वोट बैंक को पकड़ने और हिंदुत्व को उत्कर्ष पर पहुंचाने की उत्कट इच्छा प्रकट हो रही थी। कर्ण सिंह से तीन महीने छोटे, के.नटवर सिंह अभी जीवित हैं। 2004 में विदेश मंत्री बनने के बाद, उसी साल 14 जुलाई को बर्लिन आये। वहीं एक इंटरव्यू में नटवर सिंह ने कहा था कि नेहरू के बरक्स पीवी नरसिम्हा राव संस्कृत के ज्ञाता थे, उनकी जड़ें धार्मिक-आध्यात्मिक भारत में गहरी पसरी थीं। उन्हें, 'भारत एक खोज' की आवश्यकता नहीं थी। देश के 11वें राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम भी मानते थे कि पीवी नरसिम्हा राव राष्ट्रवादी थे, और राष्ट्र के आगे पॉलिटिकल सिस्टम को परिहार्य मानते थे। एपीजे अब्दुल कलाम के शब्दों के निहितार्थ बाबरी विध्वंस के नतीज़ों के बाद समझ में आते हैं।
बीएचयू से बी.टेक कर निकले अशोक सिंघल 1942 में बाला साहेब देवरस के संपर्क में आये, 1949 में वो प्रचारक बनाये गये। 1981 में बाला साहेब देवरस ने अशोक सिंघल को विश्व हिंदू परिषद की ज़िम्मेदारी संभालने को कहा, और 1984 में सिंघल विहिप के कार्यकारी अध्यक्ष बना दिये गये। एक बार $िफर 7 जुलाई 1984 को न्यूयार्क में दसवें विश्व हिंदू सम्मेलन से ठीक पहले की कड़ी को जोड़ते हैं, जब दिल्ली में विश्व हिंदू परिषद ने पहली बार 7 से 8 अप्रैल 1984 को धर्म संसद का आयोजन किया था। इसके सर्वेसर्वा थे अशोक सिंघल। प्रमुख विषय था, अयोध्या, काशी, मथुरा में मस्ज़िद की जगह मंदिरों का निर्माण।
इसके बाद दूसरा धर्म संसद कर्नाटक के उडूपी में 31 अक्टूबर से 1 नवंबर 1985 को विहिप ने ही आहूत किया, जिसमें जगतगुरू माधवाचार्य की अध्यक्षता में 851 संत और धर्मगुरू इकठ्ठे हुए थे। द्वितीय धर्म संसद में जो आठ प्रस्ताव पास हुए, उसमें अयोध्या, काशी, मथुरा का मुद्दा भी था। उसके चार साल बाद, तीसरी धर्म संसद का आयोजन 29 से 31 जनवरी 1989 को प्रयाग में महाकुंभ के दौरान हुआ। इसके दो साल बाद 2 से 3 अप्रैल 1991 को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में विहिप ने चौथी धर्म संसद का आयोजन किया था, जिसमें चार हजार संत-महंत देश भर से आये। चौथी धर्म संसद में 10 महत्वपूर्ण प्रस्ताव पास किये गये थे। उसमें पहला अजेंडा था यूपी में राष्ट्रपति शासन लगाकर विवादित ज़मीन श्रीराम जन्मभूमि न्यास को सौंपना और मंदिर निर्माण करना। यह प्रस्ताव विहिप के तत्कालीन अघ्यक्ष अशोक सिंघल ने ही रखा था। 30-31 अक्टूबर 1992 को पांचवा धर्म संसद दिल्ली में ही हुआ था।
1994 में छठी धर्म संसद से आयोजन को अखिल भारतीय किया गया। पांच विभिन्न स्थानों नासिक, तिरूपति, काशी, गुवाहाटी और हरिद्वार में धर्म संसद आहूत किये गये। यहां भी राम मंदिर निर्माण का विषय सबसे प्रमुख था। 16 से 17 नवंबर 1996 को नई दिल्ली में सातवें धर्म संसद में गंगा शुद्धिकरण और राममंदिर निर्माण समेत 17 प्रस्ताव पास किये गये। 6-7 फरवरी 1999 को अहमदाबाद के रविदास नगर में आठवीं धर्म संसद बुलाई गई। नौवीं धर्म संसद 19 से 21 जनवरी को प्रयागराज के महाकुंभ में आयोजित हुई थी, और विहिप ने दसवीं धर्म संसद 22-23 फ रवरी 2003 को दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित कराया था।
विश्व हिन्दू परिषद की वेबसाइट पर धर्म संसद के आयोजन संबंधी जो सूचना है, वह केवल 11वीं धर्म संसद सत्र तक की है, जो 13-14 दिसंबर 2005 से 2 से 5 मार्च 2006 तक हरिद्वार, वेदताल(गुजरात), प्रयागराज, गुवाहाटी, जगन्नाथपुरी और तिरूपति में आयोजित किये गये थे। 11वीं धर्म संसद के विभिन्न सत्रों में गौ-गंगा, श्रीराम जन्मभूमि, मठ-मंदिर का अधिग्रहण, हिंदू वोट बैंक, धर्म परिवर्तन, लव जिहाद रोकने, इस्लामी आतंकवाद जैसे विषय उठाये गये। इसके बाद किन कारणों से विहिप ने धर्म संसदों के आयोजन से अपने हाथ पीछे खींच लिये? इस प्रश्न का उत्तर देने से विहिप मुख्यालय के अधिकारी गोपाल जी ने देने से इंकार किया।
इसका अर्थ तो यही निकलता है कि विगत पन्द्रह वर्षों से विहिप जैसे बड़े धार्मिक संगठन के झंडे तले ऐसे धर्म संसद आयोजित नहीं किये जा रहे। इसका कोई अता-पता नहीं कि इन दिनों ऐसे विशाल आयोजनों के पीछे कौन-कौन से धार्मिक समूह व एनजीओ हैं, और पैसे कहां से आ रहे हैं? पिछले 17 से 19 दिसंबर 2021 तक हरिद्वार में जिस धर्म संसद का आयोजन हुआ, उसके कर्ता-धर्ता जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी यति नरसिंहानंद गिरि बताये जा रहे हैं। रायपुर में 25 से 26 दिसंबर को धर्म संसद के आयोजक नीलकंठ सेवा संस्थान नामक एनजीओ है, जिसके संस्थापक नीलकंठ त्रिपाठी ने बयान दिया कि हमने केवल सनातन धर्म वालों को एकजुट करने के उद्देश्य से धर्म संसद का आयोजन किया था।
रायपुर आयोजन का हैरतअंगेज हिस्सा यह था कि जिस समय कालीचरण नामक बिंदीधारी लफंगा राष्ट्रपिता को अपशब्द कह रहा था, उसके विरोध में खड़े कुछेक साधुओं को चुप करा दिया गया। रायपुर कोर्ट में शुक्रवार को सुनवाई के दौरान गोडसे समर्थकों की भीड़ जिस तरह कालीचरण के महिमामंडन के वास्ते खड़ी नारे लगा रही थी, वैचारिक पतन का सबसे बड़ा प्रमाण है। तमाम छीछालेदर के बावजूद धर्म संसद की दुकानदारी बंद नहीं होगी। 22-23 जनवरी 2022 को एक दूसरा ग्रुप अलीगढ़ में धर्म संसद आयोजित करेगा। इसमें इस्लामिक जिहाद के खिला$फ अग्नि प्रज्जवलित की जाएगी। लगता है यूपी चुनाव तक धर्म संसदों की बाढ़ आने वाली है। इन्हें फंड इत्र वाले दे रहे हैं, या गो मूत्र वाले? इसका पता करने के लिए ईडी और आईटी वालों के पास समय नहीं है।
सबसे अफसोसनाक है गांधी की छवि पर राजनीतिक रोटी सेंकने वाले श्रीमान नरेंद्र मोदी का एक ट्वीट तक इस विषय पर नहीं आना। इस देश में एक दूसरे नरेंद्र भी हुए हैं, जिन्हें पूरी दुनिया सभी धर्मों को एक दृष्टि से देखने की वजह से पूजती है। वो हैं स्वामी विवेकानंद। शिकागो में 11 सितंबर 1893 को आहूत विश्व धर्म संसद में पूरी दुनिया के धार्मिक विचारक मंच पर थे। स्वामी विवेकानंद ने सर्वधर्म समभाव का संदेश देकर भारत का मान ऊंचा किया था। सांप्रदायिकता, हठधर्मिता, वीभत्स धर्मान्धता के विरूद्ध विवेकानंद ने आवाज़ उठाई थी। उन्होंने कहा था, 'सभी संप्रदायों एवं मतों को कोटि-कोटि हिंदुओं की ओर से धन्यवाद देता हूं।' अब उसी धर्म संसद के मायने बदल दिये गये। अशोक सिंघल के रहते जितने धर्म संसद आहूत किये गये, प्रस्ताव पढ़ लीजिए, कभी गांधी पर हमला नहीं हुआ। राष्ट्रपिता को छोड़िये, पीवी नरसिम्हा राव द्वारा एक करोड़ कथित घूस लिये जाने का मुद्दा किसी ने धर्म संसद में उठाना चाहा था, उसे भी अशोक सिंघल ने सख्ती से रोक दिया था।
pushpr1@rediffmail.com